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Friday, September 27, 2013

कौंधते सवाल?

जब कभी भी हम पीछे मुड़कर देखते है तो हम भौचंके रह जाते हैं। जब हम आजाद हुये उस वक्त हमारे रुपए की कीमत एक डालर थी। (1947, एक डालर = एक रुपया ) ओर आज 69 रुपए में एक डालर, काफी प्रगति की हैं? चारों ओर विकास का शोर हैं, हर तरफ देश की जय जयकार के नारे लग रहे हंै। लेकिन हमारा विकास हुआ? कितना? चीन हम से बाद में आजाद हुआ, लेकिन आज कहा हैं? हम हर तरह से सम्पन्न थे, फिर भी आज गरीब क्यों? बहुत सारे सवाल कौंधते हैं, लेकिन जो सवाल सबसे ज्यादा परेशान करता हैं, वह है हमारी देश भक्ति पर। आज हिन्दुस्तान का हर आदमी देश से पहले अपने धर्म, अपनी जाति और अपने राज्य को समझता हैं, राष्ट्र कहीं खोता जा रहा है। कोई भी देश तब-तक विकास नहीं कर सकता, जब तक अपने आप पर विश्वास नहीं होता। क्या हम में है विश्वास? क्या हम में वो ताकत है, जो कठोर फैसला ले सकें? कहीं ना कहीं हमें सोचना होगा कि क्यों नहीं हमारी सरकार में वो क्षमता जो कठोर फैसले ले सके। इसका जिम्मेदार कौन है? आज हम हर गलती का जिम्मेदार सरकार को बताते हैं, और सरकार पाकिस्तान को। दोस्तों, जब भी कोई नागरिक अपने वजूद को खोकर कोई कार्य करता है, उसका असर उस आदमी पर नहीं बल्कि उस समाज व उस राष्ट्र पर पड़ता है, यहीं सोच हमें पैदा करनी होगी। बात-बात पर हर गलती की वजह दूसरे पर मढऩा हमारी आदत हो गई हैं। दोस्तों, देश सरकार का नहीं है, देश हर देश वासी का हंै और हर देश वासी ही सरकार हैं। यह हमें समझना होगा, आज हम अपने अधिकारों के प्रति इतने सजग हैं कि उन में थोड़ा सा भी खलल पड़े तो हम आसमान सर पर उठा लेते है। लेकिन कभी अपने कर्तव्यों का पालन करने की नहीं सोचते, जिस दिन देश का हर नागरिक अपने अधिकारों की तरह कर्तव्यों का पालन करने लग जायेगा उस दिन किसी पाकिस्तान या चीन की हिम्मत नहीं की हमारी तरफ आँख उठाकर देख सके। देश प्रगति तभी कर सकता है जब देश का हर नागरिक अपने-अपने क्षेत्र में देश भक्ति पैदा करें। भारत में आज भी बहुत लोग हैं जो इस देश के सच्चे नागरिक का कर्तव्य निभाते हैं। ओर हर भारत वासी का फर्ज बनता है उन बहादुरों का साथ दे।
जब एक गरीब घर में पैदा हुआ जी.आर. खैरनार अपने दम पर दाउद इब्राहिम की सत्ता हिला सकता है, एक अशोक खेमका पूरे सम्राज्य को टक्कर दे सकता है, दुर्गा शक्ति- पंजक चौधरी जैसे युवा सियासत से टकरा सकते है। तो क्या 125 करोड़ हिन्दुस्तानी दुनियां को नहीं हिला सकते? कहने और करने में फर्क बहुत होता हैं। हम कर नहीं सकते? पर करने वाले उन बहादुरों का सलाम तो कर सकते है। देश के उन बहादुरों को जो कि कर्तव्य पर 'जिन्दा- शहीदÓ हो गये उनको मेरा सलाम।
कहा खो गई है हमारी वतन परस्ती? कहां गुम हो गये मेरे देश के जाबांज? हर तरफ सिर्फ वोट घुमते है। इंसानों का कहीं नामोनिशान नहीं दिखता मेरे देश में न जाने कितने अब्दुल हमीद (परमवीर चक्र विजेता) पाकिस्तान के घर में घुस कर उनका कलेजा चीरने की क्षमता रखते है। लेकिन अफसोस, चन्द गद्दारों की लालसा ने भाई से भाई को लड़ा दिया आज देश सबसे बड़ा दुश्मन कोई है, तो वो है हम खुद। दिल्ली में दामिनी का बलात्कार हुआ हम कितने बनावटी क्रोध में चीखे लेकिन कितनी देर? बलात्कारी पाकिस्तानी थे या चाईनीज? क्या उसके बाद बलात्कार नहीं हुआ? गुनाहगार वो हैवान ही नहीं है हम भी इस गुनाह के भागीदार हैं। क्यों नहीं हम जज्बा पैदा करे कि किसी की हिम्मत ही ना हो किसी बहिन की तरफ देखने की। हम सिर्फ शोर मचाने के आदि हो गये हैं। हम भीड़ बनकर रह गये है। कभी कोई भीड़ किसी का फैसला नहीं कर सकती , हमें एक ऐसा कारवा बनाना होगा जो विचारों से दृढ़ हो और नैतिक बल से परिपूर्ण।
हिन्दुस्तान का विकास चाहते हो तो हमें लोहे के जिगर वाले युवा चाहिये। जो कि एक जोश के साथ आगे बढ़े ना कि एक की आवारा भीड़, जो कि देश की सम्पत्ति जलाकर अपने को देश भक्त कहे।
देश किसी की बपोती नहीं है देश हमारा है। इसका विकास सरकारों की घोषणाओं से नहीं हो सकता जो अपने वोट के न जाने कितने लालच हमें देते हैं। दोस्तों अगर देश का भला चाहते हो तो खुद्दारी से जीने की आदत डालों न कि भीख में जीते रहे।
सदा दूसरे की तरफ मदद के लिए ताकना कायरों का काम हैं जिन्दा दिल अपना रास्ता खुद चुनते है चाहे कितनी भी कठिनाई आये गैरत से कमाई गई रोटी जो खुशबू महसूस होती है वो भीख में मिली मिठाई में कहा। ये हिम्मत और हौंसला तुम्हें तकलीफ दे सकता है। लेकिन कभी भी हरा नहीं सकता। देश का सवाल समझते हो तो उठो वो जलजला पैदा करो कि देश के गद्दार कांप उठे। दोस्तों अभी वक्त है जमीन पर गिरे हो खड़े हो जाओं। लेकिन जिस दिन अपनी नजरों में गिर जाओंगें सम्भलना नामुमकिन होगा।

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