जिस वृक्ष के साये में एक पल के लिए आराम कर लेते है तो अगर कोई उस वृक्ष की टहनी भी काटे तो दर्द होता है? लेकिन न जाने ये अहसास कहां खो गया आज हर रोज एक बाप के अरमानों की हत्या एक बेटी कर रही है। जिस पिता ने न जाने कितनी रातें जागते हुए काट दी ताकि उसकी बेटी आराम से सोये, कितने आँसू अपनी लाडली पर कुर्बान किये ताकि उसकी बेटी सदैव हंसती रहे। लेकिन कहा गया वो प्यार जो एक बाप ने अपने बेटी के लिए कुर्बान कर दिया। आज हर तरफ एक ही स्वर सुनाई देता है। कि हम बेटियों को क्यों नहीं चाहते? क्यों बेटियों की भ्रुण हत्या हो रही है? जब वहीं बेटी एक बाप की उम्मीद की हत्या कर देती है तो समाज क्यों उस बाप के साथ नहीं? आज इस युग में जब हर तरफ नारी के अधिकार की बात होती है। तो क्या एक बाप की इंज्जत का कोई मोल नहीं? हम कैसे भूल जाते है। कि एक बाप ने कितने अरमानों से एक बेटी को पाला है? क्या यहीं प्यार है? जिसे हम प्यार समझ कर अपना सब कुछ दाव पर लगा देते है क्या वास्तव में वो प्यार है। युवाओं को सोचना होगा। आज के युवाओं की सोच इतनी तुछ कैसे हो गई कि अपनी चंद ख्वाहिसों के लिये अपने पूरे परिवार का गला घोट दें। भारत एक ऐसा देश है जो सदियों से पैसे के लिए नहीं वर्न अपनी इज्जत और संस्कारों के लिए जाना जाता रहा है। फिर अचानक आज क्या हो गया। कि हमारे बच्चे आज इतने गिर गये की वो पिढियों की ईज्जत को पल भर मिटा दे। कैसी आजादी है ये? कैसी शिक्षा? प्यार शब्द का अर्थ ही बदल दिया। एक माँ जो 20 वर्ष तक अपने खून से पालती है। उसके एक आँसू के बदलें खून बहा देती है। क्या वो प्यार नहीं है? एक बाप जिसके लिये सारे जग से लड़ जाता है। जिसकी एक हंसी के लिए जीवन भर दर्द सहकर पालता है क्या वो प्यार नहीं है? अगर ये प्यार नहीं है तो चंद पलों में कैसे कोई प्यार कर सकता है। कैसे कोई प्यार को समझ सकता है? प्यार शब्द की गहराई इतनी विराट है कि सागर भी शर्माजाएं तो चंद लम्हें जो सिर्फ हवस मात्र है प्यार कैसे कह सकते है। अगर हम किसी से प्यार करते है तो कैसे उसे दु:ख दे सकते है कैसे किसी प्यारे साथी को दुनियां की नजरों से गिरा सकते है। अगर ऐसा कर रहे है तो वो प्यार नहीं हो सकता है। ये तो सिर्फ छलावा मात्र है। प्यार का नाम ही देना है। इतने मतलबी कैसे हो सकते है हम कि प्यार के नाम पर एक बाप की इज्जत छन ले। एक परिवार की गरिमा ही खत्म कर दें। एक भाई का सम्मान खो दे? ये प्यार नहीं हो सकता जब कोई आप से अपनी पसन्द का खिलोना छिन्न ले तो कितना बुरा लगता है। फिर एक बाप से बेटी और माँ से बेटा कैसे छीन सकते है आप। दर्द होता है पर कहां जाए। कौन जिम्मेदार है। क्या हम सब। हाँ कुछ न कुछ हम सब इसके जिम्मेदार है हमारी परम्पराएं हमारी विरासत जो सदियों से चली आ रही थी। उनका विघटन आज के हालात का जिम्मेदार है। सबसे बड़ा कारण कोई नजर आता है तो वो है संयुक्त परिवार का खातमा। आज सब अपनी-अपनी खुशियों में सिमंट कर रह गये है। न जाने क्यों बुजुर्ग बोझ लगने लगे है। शादी के तुरन्त बाद अलग होना परम कर्तव्य लगने लगा है। एक बेटी को जितनी नजदीकी एक दादी से हो सकती है उतनी माँ से नहीं। एक पौता अपने दादा को जो बता सकता है एक बाप को नहीं। इन बुर्जुगों से दूरियां ही युवा भटकाव का मूल कारण नजर आता है। अभी वक्त है अगर कोई बच्चा भटक गया तो उसे पराया समझ कर उस पर हंसना बंद करें। कल आपका भी हो सकता है। सोचने का वक्त है। अपनी परम्पराओं को फिर से जिंदा करना होगा। हमें फिर से युवाओं को मौका देना होगा कि वो दादी के आँचल में बैठ कर कहानियां सुने। हम बात परम्पराओं की करते है पर आज के बच्चों को उनकी भनक तक नहीं होने देते जो शिक्षा उन्हें हमारे बुर्जग दे सकते है। हम उन बुजुर्गो का साया भी इन से दूर रखना चाहते है। फिर वो बच्चे अकेले कैसे गुनाहगार हो सकते है। सोचा?
आज हमारी बढती भौतिक अभिलासा भी काफी हद तक इस समस्या की जिम्मेदार लग रही है। आज हर कोई पैसे के पीछे दौड़ रहा है। किसी के पास वक्त ही नहीं है। कितने बाप है जो अपने बच्चों को दिन में एक घण्टे का वक्त भी देते है। कितने परिवार है जो अपनी बच्चियों की ख्वाहिसों को समझते है। शायद नहीं। जब बच्चों को माँ-बाप का प्यार चाहियें तो हम उन्हें कम्प्यूटर थमा देते है। वो कम्प्यूटर ही उनका हम दर्द बन जाता है। जब मशीन किसी की हम दर्द हो जाये तो बाप के दर्द को कौन समझे। हमें इस अंधी दौड़ को रोकना होगा। आज सिर्फ युवाओं को दोष देना वाजिब नहीं लगता समाज भी इसका गुनहगार है। आज हर बाप का फर्ज है कि अपनी बेटी को प्यार दे ना कि कम्प्यूटर क्योंकि बेटी के शरीर में भी दिल है मशीन नहीं? पैसे देकर अपना फर्ज पूरा समझने की भूल हम कर रहे है। जो कि सबसे ज्यादा हानिकारक है। अगर बाप को बेटी चाहिये तो उसे वक्त दे उसे बताये कि हम जिस दुनियां में जिते है वहां मशीन से ज्यादा अहम इंसान है बेटी को बोझ समझना बंद करें उसे भी बेटे की तरह प्यार दे ताकि किसी पराये के प्यार के लिए अपने बाप के अरमनों की हत्या ना करनी पड़े?
आज हमारी बढती भौतिक अभिलासा भी काफी हद तक इस समस्या की जिम्मेदार लग रही है। आज हर कोई पैसे के पीछे दौड़ रहा है। किसी के पास वक्त ही नहीं है। कितने बाप है जो अपने बच्चों को दिन में एक घण्टे का वक्त भी देते है। कितने परिवार है जो अपनी बच्चियों की ख्वाहिसों को समझते है। शायद नहीं। जब बच्चों को माँ-बाप का प्यार चाहियें तो हम उन्हें कम्प्यूटर थमा देते है। वो कम्प्यूटर ही उनका हम दर्द बन जाता है। जब मशीन किसी की हम दर्द हो जाये तो बाप के दर्द को कौन समझे। हमें इस अंधी दौड़ को रोकना होगा। आज सिर्फ युवाओं को दोष देना वाजिब नहीं लगता समाज भी इसका गुनहगार है। आज हर बाप का फर्ज है कि अपनी बेटी को प्यार दे ना कि कम्प्यूटर क्योंकि बेटी के शरीर में भी दिल है मशीन नहीं? पैसे देकर अपना फर्ज पूरा समझने की भूल हम कर रहे है। जो कि सबसे ज्यादा हानिकारक है। अगर बाप को बेटी चाहिये तो उसे वक्त दे उसे बताये कि हम जिस दुनियां में जिते है वहां मशीन से ज्यादा अहम इंसान है बेटी को बोझ समझना बंद करें उसे भी बेटे की तरह प्यार दे ताकि किसी पराये के प्यार के लिए अपने बाप के अरमनों की हत्या ना करनी पड़े?
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